apni baat
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मेरी एक नयी नज़्म
ये शाम की चादर ये बेनूर अँधेरे
कोने में बैठा ताकता हूँ आँखों में सवेरे
क्या सवेरा होगा ?
आस्मां पर पिरन्दों का बसेरा होगा ?
क्या सुबह लायेगी िज़िदगी का पैगाम
या भिवष्यवाणी की तरह अँधेरा होगा |
वह्शत में आगे बढ़ता हूँ ,
खुजली सा नीचे से ऊपर को चढ़ता हूँ |
मगरूर िसपाही की तरह
कमज़ोर ितपाही की तरह
टूट कर िबखर जाऊँगा
ितनके सा इधर से उधर चला जाऊँगा
रेत में मृगतृष्णा सा छला जाऊँगा
याद रखता है कौन बीते हुए पलों को
आँिधयों में शाख से िगरे कच्चे फलों को
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